गम्भीर निद्रा में था जिला प्रशासन, इसीलिये बार-बार जगाने पर भी नहीं जागा- नकुलनाथ
–डीएचओ (डिस्ट्रिक हेल्थ ऑफिसर) को बच्चों की बीमारी से कराया था अवगत
–जिम्मेदार अपनी जिम्मेदारी को समझते तो नहीं जाती मासूम बच्चों की जान
छिन्दवाड़ा(चौथा स्तंभ)
स्वास्थ्य विभाग के आला अफसर गम्भीर निद्रा में थे, सरकार में बैठे लोग सत्ता का आनंद उठा रहे थे, इसीलिये बार-बार जगाने पर भी कोई नहीं जागा। परिणामस्वरूप जिले के 25 मासूम बच्चों की असमय मृत्यु हो गई। दुर्भाग्य इस बात कहा है कि कांग्रेस के साथ ही नागपुर के अस्पताल ने भी जिम्मेदारों को बच्चों की बीमारी से अवगत कराया, किन्तु किसी ने भी तत्काल ठोस कदम नहीं उठाए। उक्त उदगार जिले के पूर्व सांसद माननीय नकुलनाथ जी ने जारी प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से व्यक्त किए।
श्री नकुलनाथ ने जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि नागपुर के न्यू हेल्थ सिटी हॉस्पिटल धंतौली ने 16 सितम्बर 2025 को एक अति महत्वपूर्ण पत्र DHO Chhindwara (डिस्ट्रिक हेल्थ ऑफिसर) छिन्दवाड़ा को लिखा, जिसमें उन्होंने परासिया से भर्ती किए गए सभी मासूम बच्चों में एक जैसी गम्भीर बीमारी होने का उल्लेख किया। बाल रोग विशेषज्ञों के द्वारा की गई जांच में सामने आया कि दो से तीन दिनों तक बच्चों में तेज बुखार रह, जिसके उपरांत उनकी पेशाब बंद हुई और फिर किडनी फेल होने से मृत्यु हो गई। न्यू हेल्थ सिटी हॉस्पिटल के द्वारा जिला चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी छिन्दवाड़ा को भेजे गए पत्र में बच्चों की मौत के कारणों को लगभग स्पष्ट किया, अगर जिम्मेदार नींद में नहीं होते और गम्भीरता दिखाते तो शेष मासूम बच्चों की जान बचाई जा सकती थी।
जारी बयान में श्री नाथ ने बेपटरी हुई स्वास्थ्य सुविधाओं पर सवाल उठाते हुए कहा कि आखिर जिला प्रशासन ने नागपुर के हॉस्पिटल द्वारा भेजे गए पत्र पर गम्भीरता दिखाते हुए त्वरित ठोस कदम क्यों नहीं उठाए? क्या जिले के जिम्मेदारों के लिए मासूम बच्चों की जिन्दगी से इतर कोई और भी महत्वपूर्ण कार्य था? अगर था भी तो सर्वप्रथम इस ओर ध्यान दिया जाना था कि शेष बीमार बच्चों की जान कैसे बचाई जाए। प्रदेश सरकार ने इस मामले में जितनी लापरवाही और असंवेदनशीलता का परिचय दिया है, उतनी ही लापरवाही जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग ने भी बरती है।
आज भी कागजी खानापूर्ति हो रही:-
जारी प्रेस विज्ञप्ति के अंत में श्री नकुलनाथ ने कहा कि आज भी जिम्मेदार इस सम्पूर्ण मामले में कागजी खानापूर्ति के सिवाए और कुछ नहीं कर रहे हैं। बीमार बच्चों के इलाज पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा ना ही इलाज में लगने वाली राशि का प्रदेश सरकार की ओर से भुगतान किया जा रहा। प्रदेश सरकार से आग्रह किया कि कागजी खानापूर्ति को बंद कर अविलम्ब इलाजरत बच्चों को आर्थिक मदद पहुंचाए ताकि उनके परिजन मानसिक तनाव से बाहर निकल सकें।

